
सुदर्शनकाण्ड अर्थ सहित
सुदर्शनकाण्ड रामायण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें हनुमान जी के अद्भुत कार्यों और उनके साहसिक कार्यों का वर्णन किया गया है। यह काण्ड भगवान राम की पत्नी सीता के बारे में जानकारी प्राप्त करने और उन्हें रावण के बंदीगृह से मुक्त कराने के प्रयास में हनुमान जी की यात्रा को दर्शाता है।
सुदर्शनकाण्ड का एक-एक श्लोक भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और उनके जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालता है। यहाँ हम सुदर्शनकाण्ड के कुछ प्रमुख श्लोकों के अर्थ के बारे में चर्चा करेंगे।
।। श्लोक ।।
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् ।।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ।।
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा ।। अर्थ सहित
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।
श्लोक का अर्थ सहित विवरण
यह श्लोक भगवान श्रीराम और उनके दिव्य रूप की महिमा का वर्णन करता है। इसमें भगवान श्रीराम के गुण, रूप, और उनकी दया की विशेषताओं का गान किया गया है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीराम के भक्तिपूर्वक दर्शन की महिमा और भक्ति की शक्ति को प्रस्तुत किया गया है।
श्लोक 1:
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।
अर्थ:
- शान्तं: शांत, निर्लेप (जो सदा शान्त रहते हैं)
- शाश्वतम: शाश्वत (अमर)
- अप्रमेयमनघं: अप्रमेय (जो अज्ञेय है) और अनघ (निरंतर शुद्धता वाले)
- निर्वाणशान्तिप्रदं: जो निर्वाण और शांति देने वाले हैं
- ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं: जो ब्रह्मा, शिव और नागों द्वारा सदा पूजे जाते हैं
- वेदान्तवेद्यं: जो वेदांत से जाने जाते हैं
- विभुम्: सर्वव्यापी (जो सब जगह हैं)
- रामाख्यं: जो राम के नाम से प्रसिद्ध हैं
- जगदीश्वरं: जगत के ईश्वर
- सुरगुरुं: देवताओं के गुरु
- मायामनुष्यं: जो मायावी रूप में मनुष्य के रूप में प्रकट होते हैं
- हरिं: हरि (भगवान)
- वन्देऽहं: मैं उनकी पूजा करता हूँ
- करुणाकरं: करुणा का स्रोत
- रघुवरं: रघुकुल के श्रेष्ठ (रघुकुल के वंशज श्रीराम)
- भूपालचूड़ामणिम्: राजाओं के मुकुट रत्न (राजाओं में सर्वोत्तम)
अर्थ:
मैं भगवान श्रीराम को नमन करता हूँ, जो शान्ति, शाश्वत, और अप्रमेय हैं। वे निरंतर निर्वाण और शांति देने वाले हैं, जिनकी पूजा ब्रह्मा, शिव, और नाग करते हैं। वे सर्वव्यापी, वेदों द्वारा जाने जाते हैं और जिनका नाम ‘राम’ है। वे सच्चे करुणा के स्रोत हैं, रघुकुल के श्रेष्ठतम हैं, और पृथ्वी के समस्त राजाओं के बीच सर्वोत्तम मणि के समान हैं।
श्लोक 2:
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।।
अर्थ:
मैं सत्य कहता हूँ, रघुकुल के स्वामी! मेरे हृदय में और कोई इच्छा नहीं है। आप सर्वात्मा हैं, जो सबके अंतरात्मा में समाहित हैं।
श्लोक 3:
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।
अर्थ:
हे रघुकुल के श्रेष्ठ! कृपया मुझे निर्भर भक्ति प्रदान करें, जो सभी इच्छाओं और दोषों से रहित हो और मेरे मन को शुद्ध कर दें।
श्लोक 4:
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
अर्थ:
वे अतुलनीय बल के धाम हैं, जिनका रूप सुवर्ण पर्वत के समान है। वे दानवों का संहार करने वाले हैं और ज्ञानियों के अग्रगण्य (सर्वश्रेष्ठ) हैं।
श्लोक 5:
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
अर्थ:
वे सभी गुणों के धाम हैं, वानरों के ईश्वर हैं, रघुकुल के प्रिय भक्त हैं, और वायु के पुत्र (हनुमान जी) हैं। मैं उन्हें नमन करता हूँ।