सुंदरकांड अर्थ सहित हिंदी में 3

चौपाई:

(1)
जात पवनसुत देवन्ह देखा । जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा ।।
(जब पवनसुत हनुमानजी आकाश में उड़ रहे थे, तब देवताओं ने उन्हें देखा और सोचा कि उनकी शक्ति और बुद्धि की विशेष परीक्षा ली जाए।)

(2)
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता । पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता ।।
(देवताओं ने नागों की माता सुरसा को भेजा, जिन्होंने आकर हनुमानजी से कहा।)

(3)
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा । सुनत बचन कह पवनकुमारा ।।
(सुरसा बोली—देवताओं ने आज मुझे भोजन दिया है, और तुम मेरे आहार हो। यह सुनकर पवनपुत्र हनुमानजी ने उत्तर दिया।)

(4)
राम काजु करि फिरि मैं आवौं । सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं ।।
(हनुमानजी ने कहा—मैं पहले श्रीराम का कार्य पूरा करूँगा, माता सीता की खोज करके प्रभु श्रीराम को उनका समाचार सुनाऊँगा।)

(5)
तब तव बदन पैठिहउँ आई । सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ।।
(इसके बाद मैं स्वयं तुम्हारे मुख में आऊँगा, यह मैं सत्य कह रहा हूँ। हे माता, कृपया मुझे जाने दो।)

(6)
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना । ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना ।।
(किन्तु सुरसा ने उन्हें किसी भी उपाय से जाने नहीं दिया और बोली—”मैं तुम्हें निगलूँगी।” तब हनुमानजी ने उत्तर दिया।)


सुरसा और हनुमानजी की माया-युद्ध लीला

(7)
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा । कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ।।
(सुरसा ने अपना मुख एक योजन (लगभग 8 मील) तक फैला लिया, तो हनुमानजी ने अपना शरीर उससे दुगुना बड़ा कर लिया।)

(8)
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ । तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ ।।
(जब सुरसा ने अपना मुख 16 योजन तक बड़ा कर लिया, तो हनुमानजी ने तुरंत अपने शरीर को 32 योजन तक बढ़ा लिया।)

(9)
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ।।
(जैसे-जैसे सुरसा अपना मुख बड़ा करती गईं, वैसे-वैसे हनुमानजी भी अपने शरीर को दुगुना बढ़ाते गए।)

(10)
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ।।
(जब सुरसा ने अपना मुख 100 योजन तक फैला लिया, तो हनुमानजी ने अति लघु रूप धारण कर लिया।)

(11)
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा । मागा बिदा ताहि सिरु नावा ।।
(वे तुरंत सुरसा के मुख में प्रविष्ट हुए और फिर बाहर निकल आए। उन्होंने सुरसा को प्रणाम किया और जाने की अनुमति मांगी।)

(12)
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा । बुधि बल मरमु तोर मै पावा ।।
(सुरसा ने कहा—”देवताओं ने मुझे तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए भेजा था, लेकिन अब मैंने तुम्हारी बुद्धि और बल का रहस्य समझ लिया है।”)


दोहा:

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान ।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान ।।

अर्थ:
(सुरसा ने कहा—”तुम बल और बुद्धि के भंडार हो, तुम निश्चित ही श्रीराम का कार्य पूर्ण करोगे।”)
उन्होंने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया और प्रसन्न होकर चली गईं। हनुमानजी भी हर्षित होकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए।

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