छंद:
(1)
कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना ।।
(लंका का किला सोने का बना था, जिसमें विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे और वह सुंदर भवनों से भरा हुआ था।)
(2)
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना ।।
(वहाँ चौक, बाजार, सजीव गलियाँ और सुन्दर मार्ग थे, जिससे यह नगर अत्यंत मनोहारी दिखता था।)
(3)
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै ।।
(हाथी, घोड़े, खच्चर और पैदल सैनिकों के समूहों को गिनना भी कठिन था। साथ ही, नगर में श्रेष्ठ रथों की भी बड़ी संख्या थी।)
(4)
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै ।।
(वहाँ विभिन्न रूप धारण करने वाले अत्यंत शक्तिशाली राक्षसों की सेनाएँ थीं, जिनका वर्णन करना कठिन था।)
(5)
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं ।।
(नगर में सुंदर वन, बगीचे, उपवन, वाटिकाएँ, सरोवर, कुएँ और बावड़ियाँ शोभायमान थीं।)
(6)
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।।
(वहाँ मनुष्यों, नागों, देवताओं और गंधर्वों की रूपवती कन्याएँ थीं, जिनका सौंदर्य मुनियों के मन को भी मोहित कर सकता था।)
(7)
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं ।।
(कहीं पर विशालकाय, पर्वत के समान शरीर वाले बलशाली राक्षस गरज रहे थे।)
(8)
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं ।।
(विभिन्न व्यायामशालाओं (अखाड़ों) में योद्धा कुश्ती लड़ रहे थे और एक-दूसरे को ललकार रहे थे।)
(9)
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं ।।
(कोटि-कोटि भयानक शरीर वाले योद्धा पूरी लगन से नगर के चारों ओर उसकी रक्षा कर रहे थे।)
(10)
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं ।।
(कहीं-कहीं दुष्ट राक्षस भैंस, मनुष्य, गाय, गधे और बकरे को खा रहे थे।)
(11)
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही ।।
(तुलसीदासजी कहते हैं कि इसीलिए मैंने इन राक्षसों की केवल संक्षिप्त कथा ही कही है।)
(12)
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही ।।
(श्रीरघुवीर (भगवान श्रीराम) के बाणों के तीर्थ में जाकर ये अपने शरीर का त्याग करके सद्गति को प्राप्त करेंगे।)
दोहा:
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।
अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार ।।
अर्थ:
(हनुमानजी ने जब लंका के बहुत से रक्षकों को देखा, तो उन्होंने विचार किया कि अब मुझे बहुत छोटा रूप धारण करना चाहिए और रात के समय नगर में प्रवेश करना चाहिए।)